प्रतीक: आपके आस‑पास के वो संकेत जिन्हें हम अक्सर देखे‑बिछे नजरअंदाज़ करते हैं

जब हम ‘प्रतीक’ शब्द सुनते हैं तो दिमाग में कई चीजें आ सकती हैं – ध्वज, एमीलेट, या फिर आपका पसंदीदा लोगो। दरअसल, प्रतीक वे चीज़ें हैं जो छोटी-सी छवि या संकेत से बड़े विचार, भावना या इतिहास को बताती हैं। भारत जैसे विविधता वाले देश में ये प्रतीक खास पहचान बनाते हैं, चाहे वो राष्ट्रीय ध्वज हो या फिर आपके गाँव की किसी नाव का निशान।

भारत में प्रमुख राष्ट्रीय प्रतीक

सबसे पहला जो मन में आता है, वो है तिरंगा – सफेद, केशरी और हरा रंग तीन पटी में बँटा हुआ। हर भारतीय के लिये ये स्वतंत्रता, शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इस ध्वज के साथ साथ हमारे राष्ट्रीय गीत, ‘जन गण मन’, भी एक आवाज़ का प्रतीक है, जो पूरे देश को एक साथ जोड़ती है। फिर है ‘भारत महामुंबई’ जैसा ऑपरेटिंग मशीनरी, जो रक्षा शक्ति का प्रतीक है, और ‘गोल्डन ट्रायल ट्राफिक सिग्नल’ जो शहरों में व्यवस्था का प्रतीक है।

सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतीक

भारत की धरती पर हर राज्य के अपने‑अपने प्रतीक हैं। दक्षिण में कन्नड़ फिल्में, उत्तर में ऊँची छज्जे वाली हवेलियाँ, और पश्चिम में घोड़े की सवारी – सब अपने‑अपने इतिहास को बताते हैं। शादी में इस्तेमाल होने वाला ‘मंगनी की रिंग’ प्रेम और बंधन का प्रतीक है, जबकि मंदिर में की जाने वाली ‘आरती’ शुद्धता और श्रद्धा की अभिव्यक्ति है।

खेल के मैदान में भी प्रतीक दिखते हैं। क्रिकेट में ताज का जैकेट जीतने वाले कप्तान के लिये सम्मान का प्रतीक होता है, जबकि ओलम्पिक में ध्वज फहराना राष्ट्र की उपलब्धियों को दर्शाता है। ये सब हमें सिखाते हैं कि एक छोटा संकेत भी बड़े विश्वासों को जगा सकता है।

व्यक्तिगत जीवन में भी कई प्रतीक होते हैं – आपका पसंदीदा जर्सी, आपका गोंद‑लैपटॉप बैग, या यहाँ तक कि आपका बेस्ट फ्रेंड के साथ का ‘हाथ मिलाना’। ये सब छोटे‑छोटे संकेत हैं जो आपके पहचान को बनाते हैं।

तो आप कैसे पहचानें कि कोई चीज़ आपके लिये क्या प्रतीक बन गई? सबसे आसान तरीका है – पूछें, क्या ये चीज़ आपका मनोभाव बदलती है? क्या यह आपको किसी खास याद दिलाती है? अगर हाँ, तो वही आपके लिये एक ‘प्रतीक’ है।

अब जब आप इस पेज को पढ़ रहे हैं, तो शायद आप भी कुछ नए प्रतीकों को पहचानेंगे – चाहे वो आपके घर के दरवाजे पर बना ‘वोकाओ पैन’ हो या फिर आपके पॉकेट में रखा ‘इको‑फ़्रेंडली बॉटल’। हर प्रतीक एक कहानी कहता है, और वही कहानी हमें जोड़ती है।

अंत में, याद रखें कि प्रतीक सिर्फ दिखावे नहीं होते, बल्कि वे हमारे मूल्यों, सपनों और इतिहास को संजोते हैं। जब भी आप कोई नया प्रतीक देखें, तो एक पल रुकें, समझें और सराहें – क्योंकि यही हमारे सामूहिक पहचान का मूल है।

क्या अमित शाह राजनीति में अपराधियों का नया प्रतीक हैं?

क्या अमित शाह राजनीति में अपराधियों का नया प्रतीक हैं?

अरे वाह! क्या खिचड़ी पक रही है राजनीति में? कुछ लोग कह रहे हैं कि अमित शाह अब राजनीति में अपराधियों का नया प्रतीक हैं। अरे बाबा, ऐसा कौन कहता है? हमें तो लगता है कि ये सब तो राजनीति का ही एक हिस्सा है। हाँ, हमें अमित जी की राजनीतिक नीतियां अच्छी लगी हैं, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि राजनीति में अपराधी होने की कोई ठेका नहीं है। इसलिए, हमें सबको एक समान देखने की आदत डालनी चाहिए, चाहे वह अमित शाह हों या कोई और। बाकी तो जैसे तैसे हो जाएगा, नहीं?