अमृता फडणवीस: नागपुर से सिम्बायोसिस तक, बैंकिंग VP और कलाकार की पढ़ाई–कैरियर यात्रा
लेखक: अभिनव प्रतिबिम्ब
एक हाथ में बैलेंस शीट और दूसरे में माइक—यह संतुलन हर किसी के बस की बात नहीं। अमृता फडणवीस ने यह करके दिखाया है। नागपुर के स्कूल की टेनिस कोर्ट से मुंबई के कॉरपोरेट ऑफिस तक उनकी रफ़्तार बनी रही, और बीच-बीच में सामाजिक अभियानों की धुन भी बजती रही। यह कहानी एक बैंकर, एक कलाकार और एक जागरूक नागरिक की है—जो तीनों भूमिकाओं में पेशेवर ढंग से खड़ी रहती हैं।
शिक्षा से करियर: बुनियाद मज़बूत, उड़ान लंबी
1979 में नागपुर में जन्म। पिता डॉ. शरद रानाडे नेत्र रोग विशेषज्ञ, माँ डॉ. चारुलता रानाडे स्त्री रोग विशेषज्ञ—यानि अनुशासन और सेवा की परवरिश। सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल, नागपुर में पढ़ाई के साथ खेल में भी दम; अंडर-16 राज्य स्तरीय टेनिस ने उन्हें लक्ष्य पर टिके रहना सिखाया। यह खेल-भाव बाद में बैंकिंग की सटीकता में काम आया—धैर्य, फिटनेस और सही शॉट का इंतज़ार।
कॉमर्स की डिग्री के लिए वे जी.एस. कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकॉनॉमिक्स, नागपुर पहुँचीं। एकाउंटिंग, ऑडिट और इकॉनॉमिक्स की समझ वहीं पुख्ता हुई। इसके बाद पुणे की सिम्बायोसिस में फाइनेंस में MBA और टैक्सेशन लॉ का अध्ययन—यह अनोखा मेल आगे चलकर उनके करियर का बड़ा हथियार बना। बैंकिंग में क्रेडिट, रिस्क, रेगुलेटरी कंप्लायंस, KYC और AML जैसे हिस्से रोज़ाना की भाषा हैं; टैक्स क़ानून की पढ़ाई ने इन्हें समझने और लागू करने की क्षमता बढ़ाई।
निवेश सलाह की सूझ-बूझ के लिए उन्होंने सेंटर फॉर इन्वेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग से वेल्थ मैनेजमेंट सर्टिफिकेशन लिया। एसेट एलोकेशन, फंड स्ट्रक्चर, जोखिम-रिटर्न का संतुलन—ये सब चीज़ें ग्राहकों की ज़रूरत के मुताबिक समाधान बनाने में मदद करती हैं।
2003 में एक्सिस बैंक से एक्जीक्यूटिव कैशियर के रूप में शुरुआत—यह जॉब बैंकिंग के सबसे भरोसेमंद मोर्चे पर रहता है। कैश, कस्टमर और काउंटर—तीनों पर एक साथ फ़ोकस। यही ग्राउंडिंग आगे ऑपरेशंस, रिलेशनशिप मैनेजमेंट और बिज़नेस डेवलपमेंट में काम आई। धीरे-धीरे वे नागपुर में बैंक की बिज़नेस शाखा की प्रमुख बनीं—टीम को संभालना, टारगेट पूरे करना और स्थानीय कारोबारियों के साथ भरोसा बनाना।
जनवरी 2015 में वर्ली, मुंबई स्थित कॉरपोरेट ऑफिस में पदस्थापन—अब भूमिका बड़ी थी: ट्रांजैक्शन बैंकिंग विभाग में वेस्ट इंडिया के लिए वाइस-प्रेसिडेंट और कॉरपोरेट हेड। ट्रांजैक्शन बैंकिंग का काम सीधे किसी कंपनी के ‘कैश-इंजन’ से जुड़ा होता है—कलेक्शन, पेमेंट, ट्रेड फाइनेंस, सप्लाई-चेन फाइनेंस, एस्क्रो और डिजिटल सॉल्यूशंस। बड़े ग्राहक—मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, फिनटेक, इंफ्रास्ट्रक्चर—सबको अलग-अलग समाधान चाहिए। इस पोर्टफोलियो में प्रोडक्ट और रिस्क दोनों पर पकड़ चाहिए, क्योंकि एक छोटी चूक बड़े ऑपरेशनल झटके में बदल सकती है।
क्वार्टर दर क्वार्टर रेवेन्यू, क्लाइंट-वॉलेट-शेयर, और डिजिटलीकरण की रफ्तार—इन मेट्रिक्स पर लगातार काम करना किसी VP के रोज़मर्रा की जिम्मेदारी है। इससे भी अहम है कम्प्लायंस: बैंकिंग रेगुलेटर की गाइडलाइंस, RBI के निर्देश, टैक्स और विदेशी व्यापार नियम—ये सब एक साथ संतुलित करना पड़ता है। यहाँ उनकी फाइनेंस + लॉ बैकग्राउंड सीधे असर दिखाती है।
इस सफ़र में खेल का अनुशासन और काम की ईमानदारी—दोनों तने रहे। टीम बिल्डिंग और क्लाइंट-कॉनफ़िडेंस बनाना उनकी शैली की पहचान है। किसी भी बड़े कॉरपोरेट क्लाइंट के साथ समाधान बनाने में न सिर्फ़ टेक्नोलॉजी, बल्कि बिज़नेस की ‘ऑन-ग्राउंड’ समझ मायने रखती है—पेमेंट साइकिल कितनी लंबी है, सप्लायर-क्रेडिट कहाँ अटकता है, और कैसे डिजिटल टूल्स से रिस्क घटाया जा सकता है—ये सारे सवाल उनके काम की धुरी हैं।

संगीत, सामाजिक काम और सार्वजनिक जीवन की सीख
बैंकिंग के बीच उन्होंने कला को भी स्पेस दिया। प्रकाश झा की फिल्म ‘जय गंगाजल’ में प्लेबैक से शुरुआत—गीत ‘सब धन माटी’ ने नई पहचान दिलाई। इसके बाद टी-सीरीज़ का ‘फिर से’—इस म्यूजिक वीडियो में अमिताभ बच्चन की मौजूदगी ने गाने को बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाया। संगीत उनके लिए सिर्फ़ शौक नहीं, प्लेटफ़ॉर्म भी है—जहाँ वे सामाजिक संदेशों को आवाज़ देती हैं।
मुंबई रिवर एंथम के ज़रिए शहर की नदियों के पुनर्जीवन की बात हो, या ‘अलग मेरा ये रंग है’ के जरिये एसिड-अटैक सर्वाइवर्स के साहस को सलाम—इन प्रोजेक्ट्स ने उन्हें अलग पहचान दी। ‘तू मंदिर तू शिवाला’ COVID-19 योद्धाओं को समर्पित रहा, तो ‘तिला जागू द्या’ महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक मजबूती पर केंद्रित। ये पहलें जागरूकता बढ़ाने और समर्थन जुटाने का काम करती हैं—और यही किसी भी सामाजिक अभियान की पहली सीढ़ी है।
वे वंचित बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित करती रही हैं—जहाँ मनोरंजन के साथ सीखने की गतिविधियाँ, करियर मार्गदर्शन और स्वास्थ्य-जांच जैसे तत्व शामिल होते हैं। यहाँ भी उनका बैंकिंग अनुभव काम आता है: फंडिंग, प्लानिंग और पार्टनरशिप—तीनों को व्यवस्थित करना। 2017 में एक अंतरराष्ट्रीय ईसाई-आस्था आधारित सभा, नेशनल प्रेयर ब्रेकफ़ास्ट में भारत का प्रतिनिधित्व उनके सार्वजनिक संवाद की परिधि को और बढ़ा गया।
सार्वजनिक जीवन में रहते हुए पेशेवर सीमाएँ बनाए रखना आसान नहीं। दिसंबर 2005 में देवेंद्र फडणवीस से उनकी शादी हुई। महाराष्ट्र की राजनीति में बढ़ते प्रभाव के साथ उन पर नज़र भी बढ़ी। ऐसे में, बैंकिंग की अपनी भूमिका और सार्वजनिक पहलों के बीच स्पष्ट रेखा खींचना समझदारी थी—हितों के टकराव से बचाव, पारदर्शिता और सही मंच का चुनाव। एक माँ होने की जिम्मेदारी भी साथ है; वे अक्सर बच्चों और युवाओं पर केंद्रित अभियानों को तरजीह देती हैं—शिक्षा और सुरक्षा दोनों पर फोकस के साथ।
खेल के दिनों की सीख—कठिन पलों में शांत रहना—संगीत में रियाज़ और बैंकिंग में परिणाम, दोनों में झलकती है। यह ‘क्रॉस-ट्रेनिंग’ उनकी मजबूती है। टीम के साथ काम करने की आदत टेनिस से आई, जहाँ हर प्वाइंट के बाद फोकस रीसेट करना होता है। कॉर्पोरेट बोर्डरूम में भी हर डील-मीटिंग में यही मानसिकता काम करती है।
उनकी यात्रा कुछ आसान मोड़ नहीं थी। बैंकिंग में तकनीक तेज़ी से बदलती है—API बैंकिंग, रियल-टाइम पेमेंट्स, UPI इंटीग्रेशन, सप्लाई-चेन फाइनेंसिंग के नए मॉडल—हर बदलाव पर अपडेट रहना पड़ता है। दूसरी तरफ़, सामाजिक अभियानों में लोगों का भरोसा अर्जित करना समय लेता है। संगीत में भी दर्शक की नब्ज़ पकड़ना जरूरी है। इन तीनों मोर्चों पर टिके रहना केवल ‘मल्टी-टास्किंग’ नहीं, बल्कि स्पष्ट प्राथमिकताओं का खेल है।
करियर के इस सफर को कुछ मील के पत्थरों से समझिए:
- नागपुर में स्कूलिंग; राज्य स्तरीय अंडर-16 टेनिस—अनुशासन और प्रतिस्पर्धा की शुरुआत।
- जी.एस. कॉलेज, नागपुर से B.Com—कॉमर्स की ठोस बुनियाद।
- सिम्बायोसिस, पुणे में फाइनेंस में MBA और टैक्सेशन लॉ—फाइनेंस + लॉ का अनोखा मेल।
- सेंटर फॉर इन्वेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग से वेल्थ मैनेजमेंट सर्टिफिकेशन—ग्राहक-केंद्रित निवेश समझ।
- 2003: एक्सिस बैंक में एंट्री; बाद में नागपुर ब्रांच का नेतृत्व—ऑपरेशंस + बिज़नेस का संतुलन।
- 2015: वर्ली, मुंबई कॉरपोरेट ऑफिस में ट्रांजैक्शन बैंकिंग (वेस्ट इंडिया) की VP—बड़े कॉरपोरेट पोर्टफोलियो की कमान।
- प्लेबैक और सिंगल्स—‘सब धन माटी’, ‘फिर से’—कला को सामाजिक संदेश से जोड़ने का प्रयास।
आज जब करियर को ‘स्पेशलाइज़ेशन’ की आँख से देखा जाता है, उनकी कहानी ‘इंटीग्रेशन’ की ताकत दिखाती है। कॉमर्स की समझ, कानून की बारीकी, निवेश की सूझ और संगीत की संवेदनशीलता—ये चारों धागे एक साथ बंधें तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है जो केवल रिज़्यूमे नहीं, बल्कि प्रभाव भी रचती है।
- सितंबर 8 2025
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